जानेमाने आलोचक नामवर सिंह की अध्यक्षता में 23 दिसम्बर 2016 को हुई ज्ञानपीठ चयन बोर्ड की बैठक में 52वें ज्ञानपीठ सम्मान का फैसला लिया गया। बोर्ड ने इस वर्ष के लिए बांग्ला कवि शंख घोष को चुना। 20 वर्षों बाद बांग्ला भाषा का साहित्यकार इस पुरस्कार से सम्मानित होने जा रहा है। इससे पहले 1995 में महाश्वेता देवी को यह पुरस्कार दिया गया था।
चंडीपुर (अब बांग्लादेश में) में 1932 में जन्मे शंख घोष को इससे पहले साहित्य अकादमी सम्मान और पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चूका है। काव्य रचना की शैली और अनुभव का विस्तार उनकी रचनात्मक शक्ति का परिचय देता है।
सामाजिक स्थिति पर नजर रखने वाले घोष कविता में समय और स्थान को अत्यंत दुर्लभ काव्यात्मक शैली में सामने रखते हैं। कविता में संदेश छिपा होता है लेकिन विवादों से दूर रहती है।
घोष की प्रमुख रचनाओं में आदिम लता-गुलमोमी, मुर्खा बारो, सामाजिक नाय, कबीर अभिप्राय, मुख धेके जाय बिग्यपाने और बाबर प्रार्थना आदि शामिल हैं। उनकी दिनगुली रातगुली और निहिता पातालछाया आधुनिक कविता की पूरी पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करती हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा दिया जाने वाला यह सम्मान 1962 में शुरू किया गया था। संविधान की आठवीं सूची में शामिल 22 भारतीय भाषाओं में से किसी एक साहित्यकार को इस सम्मान के लिए चुना जाता है। पुरस्कार के रूप में शंख घोष को वाग्देवी की प्रतिमा, 11 लाख रुपये और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा।
इससे पहले बांग्ला लेखकों ताराशंकर, विष्णु डे, सुभाष मुखोपाध्याय, आशापूर्णा देवी और महाश्वेता देवी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरूप को प्रदान किया गया था और वर्ष 2015 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से गुजराती लेखक रघुवीर चौधरी को नवाजा गया था।
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